बंद किताबों के पन्नों में कुछ सूखे गुलाब आज भी जिंदा हैं
उनसे जुड़े हुए तुम्हारे कुछ अधूरे वादे आज भी शर्मिंदा हैं
अपनी ना उम्मीदियों का चर्चा मैं यहाँ क्या करूँ
वो भूले हुए किस्सों की तरह मेरे ज़हन में वाबस्ता हैं
मैं हर पल तुम्हारी मुस्कुराहटों पे लिखती रही 'ख़ुशी'
हाँ तुम्हारे लबों पे मेरे दर्द के दस्तावेज आज भी पुख्ता हैं
रचना कुलश्रेष्ठ 'ख़ुशी'
21 नवम्बर 2012
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