खुबसूरत हो तुम इतनी की, बस पाने की आरज़ू होती है,
पास जाएँ तो कैसे ये Complex feeling क्यूँ होती है,
कहानियों में सुना है, किताबों में पढ़ा है,
लेकिन अप्सराएँ भी कभी ज़मीन पर होती हैं ?
क्या यह ख्वाब है या तुम standards से परे हो,
ये नयन तुम्हारे ही ख़्वाबों से भरे हों,
ज़हन में ख़याल बन के थम जाती हो
जहाँ भी जाती हो, show stealer बन जाती हो,
यूँ ही पलकों पे अश्क मेरे सजा देती हो,
Traditional को तुम abstract बना देती हो,
यह इन्तेहाँ है या एक और जलवा तुम्हारा,
Perfection को भी perfect बना देती हो.
तुम पास होती हो तो हर season खुशनुमा होता है,
तुम्हारे आने से रेत पे पानी का गुमाँ होता है,
जब भी मेरी life में ग़मगीन समाँ होता है,
तुम चली आती हो और हर शोर बेज़ुबां होता है.
अब इस दिल की आरजू को stop करें कैसे,
Picture अपनी hit है इसे flop करें कैसे,
तुम्हें एक बार छूने की तमन्ना है.. लेकिन,
ओस की बूँद हो तुम नाज़ुक सी, तुम्हें छूएं कैसे.
(C) Deepak Babber & Rachana Kulshrestha
(Creative Concept by Deepak & creative support by Rachana)
5th Jan 2012
1 comment:
I believe this is the very script with the help of which we came to know about one similar characteristics about each other;
Well Done and great work;
Hats off;
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