उम्मीद के बादलों से आज विश्वास की फुहारें चली आयीं,
एक अरसे से प्यासी मेरे मन की धरती को मिली कुछ राहत,
इन फुहारों में ख़ुशी से फूटी अरमानों की कोपलें खिलखिलायीं,
कतरा-कतरा इन बूंदों में अनायास ही बहने लगी मैं,
हर एक कतरे में जैसे सारी ज़िंदगी सिमटती चली आयी.
27 जून 2011(c) रचना कुलश्रेष्ठ
No comments:
Post a Comment