कुछ ख्वाब हमारी आँखों से ढलने लगे
कुछ अरमान हमारे दिल के पिघलने लगे
यूँ तो अब भी डर लगता है गिरने से हमें
लेकिन अब हम गिर के संभलने लगे
रचना कुलश्रेष्ठ
११ जुलाई २०१२
ख़ुशी से नहीं कोई होता फ़नाह, कैसे कर सकती है वो ये गुनाह, वो तो बस दिल से होक गुज़र जाती है, दिलों को समेटने में खुद बिखर जाती है. ये ही है ख़ुशी की कैफ़ियत। Welcome to Kaifiyat. Its human trait to have emotions so lets emote and explore the colourful world of words.