Tuesday, August 12, 2014

~~~ मौत का सामान ~~~

मुश्किल यूँ मेरी आसान हो गयी होती 
थोड़ी जो उनसे पहचान हो गयी होती 

बना लेती मैं भी ख्वाबों का एक महल
मोहब्बत जो परवान हो गयी होती 

खिलते गुंचे और कलियाँ चमन में 
कच्ची धूप जो मेहमान हो गयी होती 

यादें कुछ ज़िंदा है, उन बूढ़ी गलियों में 
वरना जाने कबकी वीरान हो गयी होती 

काँच थीं, चटक गयीं वो लाल चूड़ियाँ 
अबतक कलाइयों की शान हो गयी होती 

शुक्र है नज़्मों-रुबाइयों का साथ है मिला 
तन्हाई तो मौत का सामान हो गयी होती 

- रचना २० नवम्बर २०१३


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