ख़ुशी से नहीं कोई होता फ़नाह, कैसे कर सकती है वो ये गुनाह, वो तो बस दिल से होक गुज़र जाती है, दिलों को समेटने में खुद बिखर जाती है. ये ही है ख़ुशी की कैफ़ियत। Welcome to Kaifiyat. Its human trait to have emotions so lets emote and explore the colourful world of words.
Saturday, December 15, 2012
~~~All that I Want~~~
A few words of love
A few words of care
Eagerness to give
A wanting to share.
Just a pleasant smile
A glitter in the eyes
A heart of gold
A sense of belonging.
The tight hold of your arms
The feeling that you are mine
A promise to be kept life long
A relationship that is so divine.
It is just this much
that i want from you
Can u give me love,
pure, selfless and true?
(c) Rachana Kulshrestha
~~~Friendship Day Poem~~~
वक़्त ने ज़िन्दगी के हर पड़ाव पर,
मेरे लिए कुछ सितारे भेजे,
आँखों में सावन न आये,
इस वास्ते कुछ नज़ारे भेजे,
आँधियों में कहीं खो न जाऊं,
संभालने को कुछ सहारे भेजे,
शुक्रिया! अदा करती हूँ ऊपर वाले का,
फरिश्तों के लिबास में जो दोस्त इतने प्यारे भेजे..!
(C) Rachana Kulshrestha
7th Aug 2011
~~~आरज़ू~~~
खुबसूरत हो तुम इतनी की, बस पाने की आरज़ू होती है,
पास जाएँ तो कैसे ये Complex feeling क्यूँ होती है,
कहानियों में सुना है, किताबों में पढ़ा है,
लेकिन अप्सराएँ भी कभी ज़मीन पर होती हैं ?
क्या यह ख्वाब है या तुम standards से परे हो,
ये नयन तुम्हारे ही ख़्वाबों से भरे हों,
ज़हन में ख़याल बन के थम जाती हो
जहाँ भी जाती हो, show stealer बन जाती हो,
यूँ ही पलकों पे अश्क मेरे सजा देती हो,
Traditional को तुम abstract बना देती हो,
यह इन्तेहाँ है या एक और जलवा तुम्हारा,
Perfection को भी perfect बना देती हो.
तुम पास होती हो तो हर season खुशनुमा होता है,
तुम्हारे आने से रेत पे पानी का गुमाँ होता है,
जब भी मेरी life में ग़मगीन समाँ होता है,
तुम चली आती हो और हर शोर बेज़ुबां होता है.
अब इस दिल की आरजू को stop करें कैसे,
Picture अपनी hit है इसे flop करें कैसे,
तुम्हें एक बार छूने की तमन्ना है.. लेकिन,
ओस की बूँद हो तुम नाज़ुक सी, तुम्हें छूएं कैसे.
(C) Deepak Babber & Rachana Kulshrestha
(Creative Concept by Deepak & creative support by Rachana)
5th Jan 2012
~~~जुदा कहाँ~~~
एक भूली तस्वीर पुरानी, छिपा यहाँ
आज एक रात सुहानी, बिता यहाँ
क्यूँ दर्द बसा के सीने में, यूँ रोता है
कोई किस्सा अपनी जुबानी, बता यहाँ
मैं तुझ में रब को पा के हैरान हूँ
तुझको भी है हैरानी, ख़ुदा कहाँ
तू भी भीड़ में तन्हा खुद को पाता है
फिर मुझसे है तेरी कहानी, जुदा कहाँ
© रचना कुलश्रेष्ठ
२७ फरवरी २०१२
Tuesday, August 7, 2012
~~~A tribute to my Papa - On Father's Day~~~
मैं लाख चाहूँ भी तो भुला नहीं सकती
अहसान तुम्हारा चुका नहीं सकती
मैं बस एक कतरा हूँ तुम्हारे व्यक्तित्व का
तुम बिन न मोल कोई मेरे अस्तित्व का
तुमने जो प्यार और भरोसा बरसाया मुझ पर
बन नहीं सकता कोई भी वो सरमाया जीवनभर
कर्ज़दार तुम्हारी मेरी हर एक सांस है
मुझे हर पल तुम्हारे पास होने का एहसास है
जीवन दिया तुमने और परवरिश दी इस तरह से
मैं अपने पैरों पे खड़ी हूँ आज सिर्फ तुम्हारी वजह से
मेरी हर प्रार्थना में, आभार में है तुम्हारे नाम का जापा
जहां भी हो, मुझ पर अपना हाथ बनाए रखना 'पापा'
© रचना कुलश्रेष्ठ
१७ जून २०१२
Saturday, August 4, 2012
~~~AKN Beckons~~~
कभी पंछी चहकते थे यहाँ
कभी गागर छलकते थे यहाँ
कभी तुम मेरी खामोशी सुन लेते थे
कभी कुछ ख्वाब भी हम बुन लेते थे
कभी यहाँ महफ़िलें जवाँ हुआ करती थीं
शमा के साथ कुछ नज्में फना हुआ करती थीं
कभी मेरे दुःख में आँखें तुम्हारी भर आती थीं
कभी ख़ुशी तुम्हारी मेरे होठों पर इठलाती थी
फिर आज क्यूँ इस कदर मसरूफ हुए हम
ये किन उलझनों में आज हम यूँ हुए गुम
मुझे फिर से तुम्हारी नज्मों को अपनी पलकों से छूना है
लौट आओ घर, कि ये आँगन तुम बिन सूना सूना है
© रचना कुलश्रेष्ठ
२२ जून २०१२
Monday, July 23, 2012
~~~कुछ ख्वाब~~~
कुछ ख्वाब हमारी आँखों से ढलने लगे
कुछ अरमान हमारे दिल के पिघलने लगे
यूँ तो अब भी डर लगता है गिरने से हमें
लेकिन अब हम गिर के संभलने लगे
रचना कुलश्रेष्ठ
११ जुलाई २०१२
~~~सवालिया निशाँ~~~
सांझ ढले, खिड़की के पीछे से झांकता
दूर आसमान को तकता हुआ
एक भोला सा चाँद नज़र आया
निगाह क्षितिज पे थी और
मन भटक रहा था शायद
किसी अपने की तलाश में
पलकों पे इंतज़ार की
बूँदें छलक रहीं थीं ,
होठों के किसी कोने में
छिप के बैठा था अनकहा दर्द.
माथे पर झूलती लटों में
मासूमियत उलझ गयी थी कहीं
आँखें अब पठार चलीं थीं उसकी
टकटकी बंधी थी
अब तलक क्षितिज पर ही
वक़्त की लकीरों में
जवाब खोजती हुई
सीने में गुदा हुआ
सवालिया निशाँ लिए.
- रचना कुलश्रेष्ठ
२० जुलाई २०१२
Monday, July 16, 2012
~~~ शब्द से छेड़ छाड़~~~
~~~ शब्द से छेड़ छाड़~~~
शब्द आया
अर्थ ने हाथ मिलाया
दोनों मज़े से रहे साथ साथ
उन दिनों पति-पत्नी से अंतरंग थे
शब्द और अर्थ
कभी शब्द विचलित होता
या दुखी होता
अर्थ संभाल लेता
ढाढस बंधता, दिलासा देता
उस समय शब्द को अर्थ पर
उतना ही भरोसा था जितना
दरख्तों को अपनी जड़ों पर होता है
एक दिन अचानक अर्थ, द्विअर्थी हो गया
भाषा से मादकता झलकी
शर्मिंदा हुआ शब्द
लाख समझाया अर्थ को
अर्थ नहीं माना, भटकता रहा घाट घाट
ऐसे में हार कर शब्द भी ढोने लगा
अर्थ का बोझ जबरन
जैसे ढोती हैं शराबी पत्नियों को
बेबस पत्नियां अक्सर
समय की भाषाई दुर्घटना में
अर्थ ने की शब्द से छेड़ छाड़
शब्द आहत हुआ, निराश हुआ
फिर खुद को संभाला
उठ खड़ा हुआ
और ओढ़ वाक्पटुता
अपने घाव छिपाने को !
Subscribe to:
Posts (Atom)