Saturday, December 15, 2012

~~~सपना~~~


एक सपना बुन बैठी शीशे के धागों से,
दिल को भर बैठी अपनी ही आहों से, 
अब जोड़ रही हूँ टुकड़े ज़िंदगी के, 
तोड़ जिसे मैं बैठी अपनी ही चाहों से .

© रचना कुलश्रेष्ठ 
२३ फ़रवरी २०१२ 


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