Wednesday, March 20, 2013

त्रिवेणी 2


ना मिलते जख्म दिल को इतने, ना रहता कोई निशाँ रूह पर 
वो मेरा हमसफ़र होता, जो जुबाँ में छिपा नश्तर नहीं होता 

लगा के मरहम अश्क का, मुस्कुराहट ओढ़ ली मैंने !

- रचना कुलश्रेष्ठ 
6 दिसम्बर 2012


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