Wednesday, March 20, 2013

~~~प्रतिरूप~~~


तेरे माथे की सिलवटों में सिर्फ फ़िक्र है मेरी 
हर सांस में शामिल दुआ है मेरे लिए 
मैं कितना भी आगे बढूँ, चाहे जहां भी जाऊं 
सिर्फ तेरे दामन में पाती हूँ सुकून दुनिया भर का 
कोई कुछ भी समझे, मुझे पर तू जानती है मुझे 
हर धड़कन मेरी, पढ़ लेती है हर शिकन मेरी 
तुझसे ही अस्तित्व मेरा, तुझी से जीवन मेरा 
तेरी बूढ़ी, मुस्कुराती, तजुर्बेकार आँखें तकती हैं मुझे 
अपना विश्वास समेटती, संजोती मन में 
हर पल करती बयां ये सच...
तू फिर से जीती है अपना जीवन मुझे में
और मैं खुद में गढ़ती हु प्रतिरूप तेरा माँ !

© रचना कुलश्रेष्ठ 
3 जनवरी 2013

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