Wednesday, March 20, 2013

~~~'झाड़ू का जादू'~~~


4 बज गए पर ... पिक्चर अभी बाकी है मेरे दोस्त 

"भोर हुई सूरज की किरणें निकलीं नभ के भाल से श्रम की ये साकार मूर्तियाँ लड़ने चलीं अकाल से "

1989 छठी कक्षा की एक कविता की कुछ पंक्तियाँ फिर से स्मृतिपटल पे उभर आयीं। 14 दिसम्बर 2012 की सुबह का नज़ारा ही कुछ ऐसा था और अनुभव भी। गुलाबी नगरी के ह्रदयस्थित, स्टेचू सर्किल पे कुछ साकार मूर्तियाँ, मीठी नींद त्याग, ब्रह्म महूर्त में चलीं आयीं। 
ठान लिया था सभी ने कि आज खजाना लूट के रहेंगे। और फिर एक बार जो कमिटमेंट कर दी सो कर दी। मौका था "टीम क्लीन जयपुर" के, न सिर्फ मूर्त लेने का बल्कि, अपने स्वरूप में आते ही कुछ कर गुजरने का भी। बड़ी बातें नहीं बल्कि कर्म को बनाया अपना धेय। कल तड़के 4 बज गए और पार्टी शुरू हो गयी। खोज में निकले थे सोने की। वो सोना जो हर गली नुक्कड़ में अपार मिलता है इन दिनों हमारे शहर में। जिसे हम खुद अपने घर से बाहर फेंक देते हैं। और दोस्तों सोना मिला, ढेर सारा सोना मिला। इतना की चार ट्रेक्टर भर गए पर हम सारा सोना समेट नहीं पाए। जो रह गया है उसे 'क्लीन स्वीप' करने एक कोशिश और, 16 दिसम्बर को सुबह 5:30 पे Queens Road पर एकत्रित हो कर करेंगे। 

गौरतलब बात ये है की बस एक दो बार सफाई करना काफी नहीं है बल्कि ये एक सतत प्रयास है। एक जीवित, सतत, सांस लेता हुआ सपना, कि एक दिन गुलाबी नगरी, गंदगी और कचरे के अभिशाप से मुक्त हो, स्वच्छ और सौन्दर्यपूर्ण होगी। झाड़ू का जादू तो अभी सिर्फ अपने होने की एक झलक दिखा पाया है। वो दिन दूर नहीं जब ये जादू सर चढ़ के बोलेगा ... बोलेगा कि हमारा शहर का गुलाबी रंग और गाढ़ा हो गया है, सफाई का रंग जो घुल गया है। 

लेकिन पिक्चर अभी बाकी है मेरे दोस्त! ये कचरा रूपी सोना हैरी पॉटर की बढ़ते बालों की तरह है। ये वापस आता रहेगा इसलिए ये मुहीम भी जारी रहेगी। मगर चिंता का विषय इस कचरे का वापस आना नहीं है बल्कि इसका प्रबंधन है। बचपन से हम सब जानते हैं कि कूड़ा, कूड़ेदान में ही डालना चाहिए। बगल वाले खाली प्लाट या सड़क पे नहीं। मगर दिल तो बच्चा है जी, मानता ही नहीं। :) 

ज़मीनी कचरा तो फिर भी साफ़ हो जाएगा पर दिल-ओ-दिमाग पे जमे कचरे का ... मेरा मतलब है सोने का क्या कीजियेगा??? 

- रचना कुलश्रेष्ठ 
15 दिसम्बर 2012


No comments: